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केदारनाथ के पैदल यात्रा मार्ग मे आई आपदा को लेकर मुख्यमंत्री धामी गंभीर, पर इन अधिकारियों को शायद इससे नहीं कोई सरोकार !!

केदारनाथ के पैदल यात्रा मार्ग मे आई आपदा को लेकर मुख्यमंत्री धामी गंभीर, पर इन अधिकारियों को शायद इससे नहीं कोई सरोकार !!

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने केदारनाथ पैदल मार्ग पर मलवा आने से या कहे बादल फटने के
पहले दिन से ही… लगातार स्वयं मोर्चा संभाल लिया था, लगातार वे जिले के जिलाधिकारी से , आपदा प्रबंधन तंत्र से, पुलिस महानिदेशक को उचित दिशा निर्देश दे रहे थे और मौके पर स्वयं भी निरीक्षण करने गए थे,
हर बार विपरीत परिस्थितियों में धामी स्वयं मोर्चा संभालते हुए ग्राउंड जीरो में मौजूद रहते हैं,
लेकिन अफसोस की बात है.. कि कुछ अधिकारियों को छोड़कर कुछ ऐसे अफसर भी हैं जो आपदा में अवसर तलाशते हैं.. उनका जिक्र भी आगे जरूर करूंगा, आज बात करता हूं गढ़वाल कमिश्नर विनय शंकर पांडे की..
सवाल यह उठता है कि.. वे गढ़वाल के कमिश्नर है और वे आखिर कितनी बार.. ग्राउंड जीरो पर मौजूद रहे, क्या उनकी जिम्मेदारी नहीं बनती की ग्राउंड पर आकर, ग्राउंड जीरो पर जाकर यही डट जाए , पीएम मोदी के मार्गदर्शन में मुख्यमंत्री धामी के प्रयासों की बदौलत चार धाम यात्रा मैं श्रद्धालु का सैलाब उमड रहा था , लेकिन अचानक 31 तारीख को… केदारनाथ के पैदल मार्ग पर बादल फटने से स्थिति में थोड़ा परिवर्तन जरूर हुआ है…., सड़कों को नुकसान हुआ है लेकिन मुख्यमंत्री धामी का प्रयास है कि पैदल यात्रा को कम से कम 20 दिनों के दौरान फिर से सुचारु किया जाए…. जिसके लिए धामी लगातार… बैठक कर रहे हैं अफसर के साथ, और नोडल अधिकारी भी यहा का विनय शंकर पांडे को बनाया, ताकि ग्राउंड जीरो पर काम हो, और अधिकारी ग्राउंड जीरो पर रहै , पर हो इसके विपरीत रहा है… अधिकारी मुख्यमंत्री धामी की फटकार के बाद ग्राउंड जीरो पर तो आ रहे हैं, लेकिन बस खाना पूर्ति करते नजर आ रहे हैं, उनसे पूछा जाए कि क्या है आपके पास ब्लूप्रिंट .. आगे का बताइए.. तो शायद जवाब ना होगा… बस चाय की चूसकियों के बीच बैठक शुरू होती है और खत्म हो जाती है, और बातें बड़ी-बड़ी कह दी जाती है…
मुख्यमंत्री धामी अगर स्वयं मोर्चा न संभालते तो अब तक ये रेस्क्यू लगभग पूरा भी ना हो पता, और मजे की बात सुनिये…. जब जिले में आपदा आई हो जिले के सभी अधिकारियों को वही कैंप कर के रहना चाहिए, लेकिन अधिकारी है कि फिर वे प्रशासन के हो या पुलिस के या पर्यटन विभाग के ये साहब की तरह..ही हेलीकॉप्टर से रोजाना सुबह हेलीपैड पर उतरते हैं …. . वहीं डेरा जमाते हैं . और शाम 5:00 के बाद… हेलीकॉप्टर से ही… अपनी आवास की तरफ चले जाते है..
जबकि यह हो सकता था कि… सोनप्रयाग, सिरसी , रामपुर, कहीं पर भी जिले के अधिकारी, प्रशासनिक टीम , एक कैंप कर रह सकते थे…. ताकि उनके यहां रहने से. उनके नीचे के कर्मचारियों में, अधिकारियों में काम करने की ऊर्जा बनी रहे, साथ ही ये डर भी रहे कि हमारा बड़ा अफसर यहीं पर डाटा हुआ है पर ऐसा या होता नहीं है…
गढ़वाल कमिश्नर आपदा की 5 दिन बीतने के बाद यहां आते हैं….. इस बात को लेकर स्थानीय लोगों में नाराजगी है

मुख्यमंत्री धामी के बार-बार निर्देश के बाद भी.. ग्राउंड जीरो पर अधिकारी जाने को तैयार नहीं होते …
और यदि अधिकारी ग्राउंड जीरो पर आ भी जाता है.. तो सयाम ढलते ही हेलीकॉप्टर पकड़ उधर चला जाता है जिधर उसका मन होता है…
उनको मुख्यमंत्री के विजन से क्या लेना देना??

उनको यात्रा के जल्द से जल्द फिर से शुरू होने से क्या लेने देना …

यात्रा का मतलब है 25 लाख लोगों की रोजी-रोटी और उनसे अफसरो को क्या लेना देना..

खेर सोमवार को सचिव लोक निर्माण विभाग उत्तराखंड शासन पंकज पांडे, सचिव आपदा विनोद सुमन, गढ़वाल कमिश्नर विनय शंकर पांडेय, मुख्य अभियंता राष्ट्रीय राजमार्ग दयानंद ने केदारघाटी के प्रभावित क्षेत्रों का पैदल निरीक्षण एव हवाई सर्वेक्षण किया। इस दौरान उन्होंने क्षतिग्रस्त मार्गों का जायजा लेते हुए संबंधित अधिकारियों को सोनप्रयाग से गौरीकुंड के बीच वाशआउट सड़क मार्ग को पुर्नस्थापित करने के लिए प्राथमिकता से प्लानिंग तैयार कर अविलंब कार्य शुरू करने के निर्देश दिए।
निरीक्षण के बाद उच्च अधिकारियों ने पैदल यात्रा को 15 दिन में सुचारू करने के लिए सभी संबंधित विभागों से सुझाव मांगे। इसके लिए अनिवार्य पुनर्निमाण कार्यों का एस्टीमेट तैयार कर 2 से 3 दिनों के भीतर कार्य शुरू करने के निर्देश दिए..
अब निर्देश देना, और उसे धरातल उतारना, और उतरवाना , यह बातें अलग-अलग है …
बहरहाल अब देखना होगा कि…. राज्य की मनमौजी नौकरशाही गंभीर होती भी है या नहीं….

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